हमारी परियोजनाओं का विवरण

शिक्षा कार्यक्रम (मोर मितान केंद्र, कोरोना में हर-घर शिक्षा कार्यक्रम, समुदाय शाला जुड़ाव कार्यक्रम, नयी शिक्षा नीति का क्रियान्वयन)


मोर मितान केंद्र - 3 से 6 वर्ष के बच्चों के लिए 

जोहार पहुना फाउंडेशन समुदाय और दानदाताओं के सहयोग से छत्तीसगढ़ एवं मध्यप्रदेश के सीमा क्षेत्र में स्थित आदिवासी ग्रामों में  शिक्षा कार्यक्रम का संचालन कर रहा है, जिसमें हमारा यह विश्वास है की शिक्षा को बेहतर करने के लिए समाज के समस्त लोगो को आगे आना होगा और शिक्षकों के प्रति एक विश्वास और सकारात्मक दृष्टिकोण रखना होगा l साथ ही सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में परम्परागत ज्ञान के साथ नवाचारों को समाहित करते हुए एक बेहतर शिक्षा प्रदान करना होगा l शिक्षा की असली महत्ता तब है जबी वह उम्र के हिसाब से बच्चों को मिल सके l नई शिक्षा नीति और वैज्ञानिक शोध ने यह पहले ही कहा है कि - 8 वर्ष की उम्र तक 75 प्रतिशत बुद्धि का विकास हो जाता है l और शेष पूरा जीवन पर्यन्त l ऐसे में उन्हें उनके सीखने में सर्वाधिक मदद इसी उम्र में ही देनी होगी l चूँकि यह नींव(बुनियाद) है l

      यह ऐसे गाँव है जहाँ शिक्षा पहुंचना अति आवश्यक है l जहाँ आंगनबाड़ी केंद्र नही है और ना ही नजदीक में शाला ऐसे में आदिवासी बच्चे शिक्षा नाम की व्यवस्था से कोसों दूर है l  इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए हम 3-6 वर्ष के बच्चों के साथ उनके सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में सुधार और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए काम कर रहे है l शिक्षा कार्यक्रम में हमारे कार्य इस प्रकार संचालित है –

अब तक 470 बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ा गया l

कार्यक्रम का नाम - मोर मितान केंद्र –

नामांकन – 3 से 6 वर्ष तक के बच्चे l

संचालन- समुदाय एवं वालंटियर के सहयोग से

सहयोग- जोहार पहुना फाउंडेशन छत्तीसगढ़ l

केंद्र संचालन की अवधि- 12 माह( ग्रीष्मकालीन गतिविधि कैंप)

 

 

 

 

शिक्षा कार्यक्रम के उद्देश्य हैं:

उद्देश्य 1:  ग्रामीण क्षेत्रो मे सह-स्थित आंगनबाड़ियों के बच्चों (5 से 6 वर्ष) के लिए सीखने – सिखाने की वर्तमान स्थिति की पहचान करने हेतु “स्थिति आकलन” करना । और समुदाय एवं वालंटियर के सतत सहयोग से - सहायक केंद्र के रूप में बालमित्र का संचालन करना l

 

उद्देश्य 2:  कार्यक्षेत्र के समस्त आंगनबाड़ी केन्द्रों में शिक्षण प्रक्रियाओं में अकादमिक सहयोग प्रदान करने हेतु बालमित्र अकादमिक समन्वयक की न्युक्ति कर कार्यक्रम का क्रियान्वयन करना l

 

उद्देश्य 3: राज्य एवं जिले के सतत सहयोग से, कार्यक्षेत्र में आंगनबाड़ी शिक्षको को सहयोग एवम् सुझाव प्रदान करते हुए, चरणबद्ध तरीके से राज्य भर में बालवाड़ी शिक्षकों को तैयार करने, कक्षा शिक्षण को बेहतर करने ,कक्षा संचालन का प्रदर्शन(डेमो) और प्रतिक्रिया (फीडबैक) प्रदान करते हुए मास्टर ट्रेनर(MT) तैयार करना।

 

उद्देश्य 4:  राज्य के अन्य आंगनबाड़ी केन्द्रों का संवर्धन करने हेतु इस कार्यक्रम का दृढ़तापूर्वक सर्वेक्षण एवम् निगरानी सुनिश्चित करना ।

 

उद्देश्य 5: लैंगिक समावेशिता और विशेष आवश्यकता वाले बच्चों (सीडब्ल्यूएसएन) को शामिल करना । बालवाड़ी के माहौल में बच्चों और शिक्षकों की सुरक्षा एवं समानता सुनिश्चित करने के लिए सामग्री और क्षमता निर्माण करना ।

 

 

·        हर-घर शिक्षा कार्यक्रम (कोरोना काल में शिक्षा)-

विशेष रूप से महामारी के दौरान बच्चो की शिक्षा चुनौतीपूर्ण थी । बच्चों को इस नए और अनिश्चित वातावरण का सामना करने और उनके अनुकूल बनाने में मदद करने के लिए घर पर व्यस्त रखने की जिम्मेदारी को संतुलित करना एक कठिन कार्य था । कई माता-पिता बिना सहायता के एक संतुलन नहीं बना पा रहे थे । यह भी चुनौती थी  कि बहुत से बच्चे कोविड के समय में प्रौद्योगिकी का उपयोग नहीं कर सकते थे और स्कूलों और आंगनवाड़ियों से दूर हैं (3 - 6 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षण  केंद्र)। छत्तीसगढ़ में अब लगभग 800,000 बच्चे हैं जो लॉकडाउन से पहले 50,000 से अधिक आंगनवाड़ियों में जाया करते थे। COVID-19 महामारी के कारण इन बच्चों को शिक्षा से हो रहे थे  क्योंकि उनके शिक्षण केंद्र बंद थे ।

एक महीने से अधिक समय हो गया था  बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे थे और संभावना था कि अगले कुछ महीनों तक लॉकडाउन जारी रहेगा।जब वापस लौटने का समय होगा, तो स्कूलों, प्री-स्कूलों और आंगनवाड़ियों में परिवर्तन कई बच्चों के लिए चुनौती बन सकता थी ।यही कारण है कि बच्चों को घर पर व्यस्त रखना और पढ़ाना आवश्यक था । यह उन्हें महामारी के तनाव को बेहतर ढंग से संभालने और आत्मविश्वास के साथ अपने स्कूलों और आंगनवाड़ियों में फिर से जाने के लिए तैयार करने में मदद करने का प्रयास था ।

बच्चों की शिक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए और COVID-19 की प्रतिक्रिया के हिस्से के रूप में, जोहर पहुना फाउंडेशन  बच्चों को घर पर व्यस्त रखने और पढ़ाई करने  के लिए माता-पिता और दादा दादी की सहायता करने के लिए एक अभियान शुरू किया ।अभियान हर घर शिक्षा का परिचालन का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था  कि सभी क्षेत्रों के बच्चों के पास प्रौद्योगिकी तक पहुंच के बावजूद शिक्षा की पहुंच हो। जोहार पहुना फाउंडेशन द्वारा  स्वयंसेवकों को घर पर रहते हुए अपने बच्चों की शिक्षा के साथ माता-पिता और देखभाल करने वालों की मदद करने के लिए  कार्यक्रम  शुरू किया। ऑनलाइन-ऑफ़ लाइन एवं मोहल्ला कक्षाओं की मदद से हम बच्चों तक अपनी पहुँच बनाने में सफल हुए l

इस कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला के दुर्ग एवं धमधा  ब्लाक के 200 प्राथमिक  स्कूल के 2800 बच्चे और  120 आगनबाडी  के 1234 बच्चो के साथ कार्य किया गया l  65 वालंटियर द्वारा कोविड – 19  में इस कार्यक्रम के साथ जुड़कर अपना बहुमूल्य समय दिया l जिनके लिए उन्हें प्रसंसा पत्र प्रदान कर सम्मनित किया गया l  

 

 

·        समुदाय शाला जुड़ाव कार्यक्रम – दुर्ग जिले के 22 विद्यालयों में समुदाय की सहभागिता सुनिश्चित करने शाला प्रबंधन समिति के सदस्यों एवं वालंटियर्स के सहयोग से बच्चों के सीखने में मदद के लिए नियमित घर सम्पर्क,बैठेकें एवं कार्यशालाओं का आयोजन किया गया है जिसमें 2450 पालक शामिल हुए l , ग्रीष्मकालीन शिविर का आयोजन एवं बच्चों के सीखने में मदद, शिक्षा में समुदाय की भागीदारी हेतु नियमित प्रयास जारी है l , नयी शिक्षा नीति 2020 के सफल क्रियान्वयन में मदद-  वालंटियर्स के सहयोग से बुनियादी भाषा एवं संख्या ज्ञान हेतु शाला के अन्दर एवं बाहर एक सकारात्मक वातावरण बनाना l एवं शिक्षकों को शाला स्तर पर चर्चा में शामिल करना l

 

............................................................................................................................................................................................

ग्रामीण आजीविका सशक्तिकरण –

·        परमरागत खेती के संरक्षण एवं विकास परियोजना –  आदिवासी दुरस्थ इलाकों में आज भी हमारे आदिवासी परिवार कृषि में सम्पन्नता हासिल नही कर पायें है l मिलेट फसलें पोषक तत्वों के लिहाज से पारंपरिक खाद्यान गेहूं और चावल से ज्यादा उन्नत हैं। मिलेट फसलों में पोषक तत्त्वों की भरपूर मात्रा होने की वजह इन्हें “पोषक अनाज” भी कहा जाता है। इनमें काफी बड़ी मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन-E विघमान रहता है। कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन कैल्शियम, मैग्नीशियम भी समुचित मात्रा में पाया जाता है। 

जंगल से प्राप्त खाद्य पदार्थ एवं परम्परागत खेती जिसमें कोदो,कुटकी,रागी एवं अन्य भोजन शामिल है l

इन सभी भोजन में अत्यधिक मात्रा में फाइबर एवं प्रोटीन जैसे पोषकतत्व शामिल है l कम उत्पादन एवं मूल्य कम होने की स्थिति में विलुप्त होती जा रहे है l जिससे संरक्षण एवं संवर्धन करने हेतु हमारी टीम कार्यरत है l जिसके लिए ग्राम स्तर पर -

कृषको को संगठित करना , बीज बैंक की स्थापना  एवं वितरण,परम्परागत खेती पर नियमित बैठकें एवं कार्यशालाएं आयोजित करना,  उत्पादन एवं बाजार मांग अनुरूप पैकेजिंग एवं विक्रय, भोजन एवं पूरक पोषण आहार में शामिल करने जागरूकता – आंगनबाड़ी केन्द्रों एवं स्व.सहायता समूहों को प्रशिक्षण शामिल है l

कार्यक्षेत्र में 30 से अधिक किसानो का संगठन बनाया गया है l जिसमें 300 से अधिक किसान जुड़े हैंl

12 बीज बैंक की स्थापना के साथ परम्परागत खेती में नवाचार के तहत 22  से अधिक बार  प्रशिक्षण प्रदान किया गया है l जिसमें मिलेट्स मिशन को ताकत मिली है l

 

 

 

 

 

·        महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम – छत्तीसगढ़ में लगभग 70 प्रतिशत लोक कृषि कार्यों से जुडे़ हैं। कृषि कार्यों के अतिरिक्त इनके पास अन्य कोई व्यवसाय नहीं है और न ही आय के अन्य साधन। खेती का कार्य साल भर में इनको 3-4 महीने ही मिलता है, इसलिए शेष महीनों में पर्याप्त आय जुटाने के लिए इन्हें कई अन्य प्रयत्न करने पड़ते हैं और आवश्यकता पड़ने पर इन्हें अपनी जमीनों और गहनों को गिरवी रखना पड़ता है, जिन्हें बाद में छुड़ाना इनके लिए अत्यधिक कठिन होता है। इस स्थिति में पुरुष वर्ग तो शहरों में मजदूरी करने लगता है किन्तु महिला के लिए यह एक संकट की घड़ी होती है, जिसमें न तो उसे खेतों पर काम मिलता है और न ही आजीविका चलाने के अन्य साधन। ऐसे स्थिति में हम महिलाओं को संगठित करने और सशक्त करने के लिए प्रयासरत है – जिसमें ग्राम स्तर पर महिला स्व. सहायता समूह (SHG) का गठन और सफल गतिविधियों का क्रियान्वयन शामिल है l हमारे साथ वर्मान में 12 स्व.सहायता समूह ने स्वयं के नेतृत्व में सक्रियता से काम जारी रखा है l जिमसें आगे भी कार्य जारी है-

महिलाओं को संगठित करना – स्व. सहायता समूहों के माध्यम से-

ग्रामीण स्तर पर नियमित बैठकें एवं प्रशिक्षण – (मशरूम उत्पादन, शाला में मध्यान्ह भोजन निर्माण, मुर्गी पालन, शहद उत्पादन, दोना पत्तल उत्पादन, आदि जिसके लिए हमारी संस्था समूहों के सदस्यो को-

सफल समहों के यहाँ एक्सपोजर विजिट-

दस्तावेज संधारण एवं छोटी बचत हेतु उन्मुखीकरण –

बेंकों से लिंकेज एवं ऋण हेतु आवेदन की प्रक्रिया में सहयोग –

बाजार मांग अनुशार उत्पादकता एवं विक्रय हेतु मार्गदर्शन –  सतत प्रदान कर रही है l

30 से अधिक महिला नेतृत्वकर्ताओं को आजीविका विषय पर प्रशिक्षण प्रदान किया गया है l

10 महिला स्व सहायता समूह के सदस्य स्वयं से आय अर्जित कर घर चला रहे है l

 

.............................................................................................................................................................................

·        वन्यजीव संरक्षण के तहत ( हाथी परियोजना ) का क्रियान्वयन –

छत्तीसगढ़ का मरवाही,कोटा,पेंड्रा के जंगल के  क्षेत्र वर्तमान में मानव-हाथी संघर्ष की चपेट में है, क्योंकि उड़ीसा या झारखंड के सिकुड़ते जंगलों से संभवतः विस्थापित होने के बाद कई  जंगली हाथियों का एक झुंड इस क्षेत्र में चला आया है। फसलों पर छापेमारी और मानव बस्तियों को नष्ट करने की नियमित घटनाएं संघर्ष के बढ़ने का कारण हैं। जब छत्तीसगढ़ वन विभाग ने तेजी से बढ़ते मानव हाथी संघर्ष को कम करने के लिए पहल की, तो जोहार पहुना फाउंडेशन के वन्यजीव संरक्षण परियोजना के तहत जंगली हाथियों के झुंड पर ग्राम संगठन एवं मोबाइल कम्युनिटी के माध्यम से योजना बनाई, ताकि प्रभावी ढंग से गांवों को समय पर अलर्ट जारी किया जा सके। हाथियों की गतिविधियों पर नज़र रखना।  हाथी जागरूकता कार्यक्रम जागरूकता बढ़ाने और मानव-हाथी संघर्ष स्थितियों को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए हितधारकों के रूप में स्थानीय समुदायों को शामिल करने में सफल रहा है। हमारी टीम के सदस्य समुदाय और वालंटियर्स की मदद से  हाथी विचरण और आवागमन के स्थान को ट्रैक करते है ताकि हम निगरानी कर सकें कि वह मानव बस्ती क्षेत्रों में आ रही है या नहीं।समय पर जानकारी और सक्रियता से हाथियों के संभावित मार्ग का आकलन करने में मदद मिलती है, जिससे गांव में अलर्ट बढ़ाने के लिए स्थानीय समुदाय के प्रतिनिधियों तक पहुंचने में मदद मिलती है। इससे उन क्षेत्रों में संघर्ष कम हो गया है जहां मानव-हाथी मुठभेड़ की संभावना रहती है। जागरूकता कार्यशालाओं में जंगली हाथियों के जीव विज्ञान, व्यवहार और पारिस्थितिकी और संघर्ष से बचने के लिए अपनाए जा सकने वाले सुरक्षा उपायों पर बैठकें एवं कार्यशालाएं आयोजित की गईं। ये सत्र ग्रामीणों को ऐसे संघर्ष के कारणों, हाथियों के व्यवहार, आवश्यक संघर्ष शमन रणनीतियों और प्रारंभिक चेतावनी के  महत्व के बारे में भी शिक्षित करते हैं। वास्तव में, इन सत्रों के माध्यम से, स्वयंसेवक हाथियों के आसपास होने पर गांवों को सतर्क करने में सक्रिय रूप से मदद करते हैं, जिससे संकट के समय संचार अधिक कुशल और विश्वसनीय हो जाता है। और बड़े संघर्ष और नुकशान को रोका जाता रहा है l इन सभी गतिविधियों के बाद भी हमें इन परियोजना क्षेत्रो में पार्यावरण संरक्षण की दिशा में आगे बढ़ने की जरुरत है – जैसे जंगल में फलदार पौधारोपण करना,वृक्षों की कटाई पर पूर्णतः प्रतिबन्ध, जंगलों में जल संग्रहण के स्थान को सुरक्षित करना, और समुदाय को वन्यजीवों के लिए प्रोत्साहित करना आदि l ग्रामीणों ,वन समिति के सदस्यों एवं वन विभाग के सदस्यों के साथ जनप्रतिनिधियों को संगठित और जागरूक करते हुए कुछ वालंटियर्स साथियों के सहयोग से परियोजना का सञ्चालन हो रहा है जिसमें वन्यजीवों के संरक्षण के लिए हमारी टीम प्रयासरत है –

अब तक हमने हाथी परियोजना में निम्न कार्य किये है l

हाथियों के आवागमन पर सतत निगरानी एवं 10  गाँवो की मैपिंग –

गाँवों में वन्यजीव संरक्षण हेतु ग्रामीण समूह निर्माण और जागरूकता – 12 प्रशिक्षण 7 बैठक

वन्यजीवों द्वारा ग्रामीण क्षतिपूर्ति का आकलन एवं विभागीय मदद हेतु प्रयास –

हाथी परियोजना क्षेत्र घोषित कराने सरकार को प्रस्ताव भेजना –

जंगल में जल संरक्षण (वाटरशेड निर्माण), पानी को रोकना, झरनों को जीवित करने, पौधारोपण एवं वन संरक्षण की दिशा में माइक्रोप्लानिंग

जीपीएम (गौरेला पेंड्रा मरवाही ) एवं बिलासपुर जिले के हाथी एवं वन्यजीवों प्रभावित 22 गाँवों में जागरूकता कार्यक्रम के तहत 80 से अधिक दीवार लेखन , 15 से अधिक प्रशिक्षण एवं बैठकें आयोजित की गयी l

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

......................................................................................................................................................................

·        जल संरक्षण एवं स्वक्षता परियोजना – हम समुदाय विद्यालय एवं ग्राम स्तर पर जल संरक्षण के लिए सतत प्रयासरत है l जिसमें -

जल संरक्षण हेतु सामुदायिक प्रयास जिसमें - नाला बंधान, वर्षा जल संग्रहण, भू-जल संरक्षण, परम्परागत जल स्त्रोतों का संरक्षण आदि –

आंगनबाड़ी,विद्यालय के साथ समुदाय को स्वक्षता के प्रति जागरूक करना- जिसमें हाथधुलाई कार्यक्रम, अच्छी आदतों का विकास, खुलें में शौच मुक्त परिवार, आदि कार्यक्रम और गतिविधिया शामिल है –

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

जंगलों में पानी संरक्षण को लेकर समुदाय के सहयोग से 80 स्थानों में नाला बंधान किया गया l जिससे पानी को लम्बे समय तक रोका जा सके और जल स्तर में बढ़ोत्तरी हुई है l

 

3 तालाबो की सफाई एवं उसे पुनर्जीवित करने हेतु प्रयास l

वर्षा जल संरक्षण के लिए समुदाय के सहयोग से 5 स्थानों में वाटरशेड बनाया गया l

मनरेगा के तहत ग्राम सभाओं के माध्यम से 6 परिवार के लोगो के लिए डबरी निर्माण कराया गया l

 

 

 

 

सितम्बर-अक्टूबर 2024 को प्लांटेशन ऑफ़ 2000 सप्लिंग

हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड (HCL) मलाजखंड (मध्यप्रदेश) के CSR के तहत  सहयोग से जोहार पहुना फाउंडेशन ने 2000  से अधिक पौधा रोपण कर पर्यावरण की दिशा में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया हैl इन पौधों  के संरक्षण के लिए स्थानीय समुदाय और समितियों को जागरूक कर इसके संरक्षण और संवर्धन के लिए प्रयास किया जा रहा है l इसी तारतम्य में आगे और 3000 पौधे लगाने की योजना बन रही है l वनों के महत्त्व को बताते हुए विभिन्न सामाजिक बैठकें प्रशिक्षण आयोजित की जा रही है l

 

 

बांस क्राफ्ट प्रशिक्षण: आदिवासी युवाओं के सशक्तिकरण की ओर एक बड़ा कदम

 

परिचय- हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड, मलाजखंड के CSR (Corporate Social Responsibility) मद के तहत जोहार पहुना फाउंडेशन के सहयोग से बैहर एवं मलाजखंड (मध्यप्रदेश) में बांस क्राफ्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम आदिवासी युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षित करने और उनकी पारंपरिक हस्तशिल्प कौशल को एक नई पहचान देने के उद्देश्य से संचालित किया गया।

         इस प्रशिक्षण में 130 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया, जिनमें युवा, महिलाएँ एवं कारीगर शामिल थे। यह पहल न केवल स्थानीय समुदाय को आर्थिक रूप से सशक्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, बल्कि इससे स्थायी आजीविका और पारंपरिक कारीगरी को भी पुनर्जीवित करने का अवसर मिला।

 

प्रशिक्षण की मुख्य विशेषताएँ

 

इस कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागियों को बांस शिल्प की संपूर्ण प्रक्रिया से अवगत कराया गया, जिसमें निम्नलिखित विषयों पर विशेष ध्यान दिया गया

 

1. बांस शिल्प की मूलभूत जानकारी

 

बांस की विभिन्न प्रजातियाँ और उनके उपयोग।

 

कच्चे माल की गुणवत्ता की पहचान और उसकी सही प्रोसेसिंग।

 

बांस की कटाई, छीलाई, आकार देने और परिष्करण की विधियाँ।

 

 

2. उत्पादन तकनीक एवं डिजाइनिंग

 

हस्तनिर्मित बांस उत्पादों की डिजाइनिंग और सजावट।

 

घरेलू सजावट, फर्नीचर और उपयोगी वस्तुओं का निर्माण।

 

बाजार में मांग के अनुरूप उत्पादों का विकास।

 

 

3. उद्यमिता एवं विपणन (मार्केटिंग)

 

स्थानीय और राष्ट्रीय बाजार में बांस उत्पादों की मांग और संभावनाएँ।

 

ऑनलाइन एवं ऑफलाइन मार्केटिंग तकनीक।

 

व्यापार और मूल्य निर्धारण की रणनीतियाँ।

 

सरकारी योजनाओं और वित्तीय सहायता की जानकारी।

 

 

4. आर्थिक सशक्तिकरण एवं स्वरोजगार के अवसर

 

आदिवासी समुदायों के लिए बांस शिल्प एक सशक्त आजीविका का साधन कैसे बन सकता है?

 

सफल बांस शिल्प उद्यमियों की प्रेरणादायक कहानियाँ।

 

स्वयं सहायता समूह (SHG) और सामूहिक उद्यमिता के लाभ।

 

प्रशिक्षण से प्राप्त प्रमुख उपलब्धियाँ

 

✅ 130 से अधिक आदिवासी युवाओं को बांस शिल्प में प्रशिक्षित किया गया।

✅ प्रतिभागियों ने 15+ प्रकार के उत्पाद (हस्तशिल्प, फर्नीचर, सजावटी वस्तुएँ) बनाने की तकनीक सीखी।

✅ 25+ युवाओं ने प्रशिक्षण के तुरंत बाद अपने स्वयं के बांस उत्पाद बनाने का कार्य शुरू किया।

✅ प्रशिक्षण के दौरान निर्मित उत्पादों को स्थानीय मेलों और बाजारों में प्रदर्शित करने की योजना बनाई गई।

✅ महिला कारीगरों की सक्रिय भागीदारी रही, जिससे वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ सकें।

✅ पर्यावरण-संवेदनशील उत्पादों के निर्माण को बढ़ावा दिया गया, जिससे स्थानीय संसाधनों का सतत उपयोग हो सके।

प्रशिक्षण का प्रभाव और भविष्य की योजनाएँ

 

यह बांस क्राफ्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम आदिवासी युवाओं के सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। इससे न केवल उन्हें आजीविका के नए अवसर मिले, बल्कि उनकी पारंपरिक कला को आधुनिक बाजार से जोड़ने का अवसर भी प्राप्त हुआ।

 

हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड एवं जोहार पहुना फाउंडेशन इस प्रयास को और आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। भविष्य में—

✅ प्रशिक्षित युवाओं को स्थायी बाजार से जोड़ने के लिए सहकारिता और सरकारी योजनाओं से समर्थन दिलाने की पहल की जाएगी।

✅ स्थानीय स्तर पर एक बांस शिल्प केंद्र (Bamboo Craft Hub) स्थापित करने की योजना बनाई जा रही है।

✅ प्रशिक्षण कार्यक्रम को अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तारित करने का लक्ष्य है, ताकि अधिक से अधिक लोग इससे लाभान्वित हो सकें।

 

यह प्रशिक्षण न केवल एक कौशल विकास कार्यक्रम था, बल्कि यह आदिवासी युवाओं के आर्थिक एवं सामाजिक सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल थी। यह कार्यक्रम उन्हें स्वावलंबी, आत्मनिर्भर और दक्ष कारीगर बनाने के साथ-साथ स्थानीय आजीविका को बढ़ावा देने की दिशा में भी एक प्रेरणादायक प्रयास साबित हुआ।

        आदिवासी समुदाय के युवाओं को सशक्त करने की यह यात्रा भविष्य में भी जारी रहेगी, जिससे वे अपनी पारंपरिक कला को एक व्यवसायिक रूप देकर आत्मनिर्भर बन सकें और एक उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर हो सकें।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

·        कोरोनाकाल में किये गए प्रयास –

प्रवाशी मजदूरों को घर पहुँचाने राहत एवं मदद ( कैम्प में ठहराव, भोजन एवं चिकित्सा के साथ यातायात के साधन उपलब्ध कराना) –

लॉकडाउन के साथ ही लोगों की मुश्किलें बढ़ने लगी और लोगों के सामने बिमारी से बचने, खाने की समस्या और रोजगार की समस्या उत्पन्न होने लगी। इस समस्या को देखते हुए कार्य क्षेत्र के गाँव में लोगों के मदद करने हेतु योजना बनाया गया।

जिला बिलासपुर एवं कबीरधाम में कोविड 19 लॉक डाउन के साथ   लोगों की आजीविका  और ग्रामीण जीवन प्रभावित होने लगा ,दैनिक जीवन उपयोग सामग्री का संकट भी लोगों के सामने गहरा गया, जिसमें स्वच्छता से लेकर खाने की समस्याएं भी होने लगीं।

छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा पीडीएस प्रणाली के साथ राशन आपूर्ति के लिए कड़े कदम उठाए गए, जिसमें उन्होंने पात्र परिवारों को कम लागत पर चावल, नमक और चीनी उपलब्ध कराई है। लेकिन जनता और ग्रामीणों के लिए यह भी पर्याप्त नहीं थे। इसके अलावा राशन की अन्य सामग्रियों की आवश्यकता होने लगी। जोहर पहुना फाउंडेशन के साथ जुड़कर कार्य करने वाले स्वयसेवी द्वारा ग्रामीण क्षेत्र के  लोगों से संपर्क किया गया और नीड असेसमेंट सर्वे किया गया जिसमें समुदाय, सामुदायिक, प्राथमिक, और उपस्वास्थ्य केंद्र, मितानिन और परिवार से मिला गया सबकी अलग-अलग आवश्यकताओं का आंकलन किया गया और आगे की कार्य योजना बनाई गई |

योजना अनुसार चार प्रकार के किट तैयार किये गए - 1- सामुदायिक स्वच्छता किट 2- राशन सामग्री किट 3- मितानिन किट 4- स्वास्थ्य केन्द्रों में जिसमें 1 CHC, 1 PHC, 2 SHC

उक्त कार्यक्रम में – सरकारी विभाग एवं स्वयंसेवी द्वारा मिलाकर 1000 परिवारों को राशन किट प्रदान किया गिया साथ ही छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिला में सरकारी स्वास्थ्य केंद्र के साथ मिलकर 5640 लोगों को जागरूक कर टीकाकरण कराया गया |

जोहर पहुना फाउंडेशन द्वारा प्रवासी मजदूरो के लिए कार्य किया गया छत्तीसगढ़ का कवर्धा जिला मध्यप्रदेश के सीमा से लगा हुआ है लगातार प्रवासी मजदूर अन्य राज्य हेतु अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए अपने घर तक पहुचने का प्रयास कर रहे थे | इस चुनौती में जोहर पहुना फाउंडेशन एवं प्रशासन के साझा प्रयास से राज्य के सीमा तह बस सुविधा प्रदाय किया गया उक्त कार्यक्रम से 17789 प्रवासी मजदूरों को आने जाने में सुविधा मिली |

 

1.रोजगार और आजीविका की व्यवस्था - लगातार जिला और ब्लॉक में समन्वय किया गया, जिससे लोगों की समस्याओं का निवारण किया जा सका, इसके लिए लोगों का मदद किस प्रकार से किया जा सका, लगातार उनके साथ रोजगार और आजीविका को लेकर चर्चा की गई।

2.विकास खण्ड के साथ समन्वय किया और मनरेगा के माध्यम से लोगों को रोजगार दिलाने को लेकर चर्चा की गई। कोविड के दौरान महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के तहत कार्य दिलाया गया। इस दौरान ग्राम पंचायत ढोलबज्जा और शंभू पिपरमें निम्न कार्य किए गए - • 3 कूप निर्माण कार्य • 2 तालाब गहरीकरण कार्य • 3 डबरी निर्माण कार्य • 1 डेम में गादसफाई • 1 नया तालाब निर्माण कार्य • 2 भूमि समतलीकरण कार्य इन सभी कार्यों के द्वारा 15556 मानव दिवस सृजित हुए, साथ ही ग्राम पंचायत के लोगों के लिए ग्राम के अंदर ही रोजगार की व्यवस्था में सहयोग किया गया। इसके साथ ही प्रशासन के साथ मिलकर राहत केन्द्रों में सहयोग –

जनसहयोग से सुखा राशन वितरण –

कोविड-19 पर जागरूकता कार्यक्रम -

संक्रमित व्यक्ति और परिवारों के लिए सहयोग- निरंतर जारी रहा l

 

.............................................................................................................................................................................

 

 

 

 

पर्यावरण संरक्षण परियोजनाएं –

·        सामुदायिक पौधारोपण कार्यक्रम –  एक पेड़-कई सांस के महत्व को समझाते हुए हमारी संस्था ने हर वर्ष बड़ी संख्या में पौधारोपण करने और उसे जिम्मेदारी के साथ बढ़ाने के लिए कार्य किया जिसमें हमने सरकार,समुदाय और वालंटियर्स के मदद से अब तक 52  हजार पौधारोपण किया l यह हमारी बहुत बड़ी जीत थी l अब हम हर साल एक बड़ा टार्गेट के साथ इसे स्थापित कर रहे है l इसके साथ ही - आगजनी एवं वन कटाव पर सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम - , वन समितियों के माध्यम से वन संरक्षण एवं संवर्धन – सामुदायिक वन अधिकार एवं जिम्मेदारियों पर उन्मुखीकरण , प्लास्टिक के उपयोग बंद करने प्रयास- पर्यटन स्थल पर प्लास्टिक मुक्त भ्रमण एवं रोक के लिए प्रयास  के साथ ही -

वन से प्राप्त उत्पादों के सुरक्षित संग्रहण हेतु प्रयास – चार (चिरौंजी), महुआ, तेंदुपत्ता संग्रहण, को व्यवस्थित संग्रहण हेतु समुदाय के लोगो को जागरूक करना –